11.हे जीव, तू पानी के मूल्य को नहीं जानता, इसीलिए तू विलाप करता हैजल ही – जीवन है

स्पष्ट रूप से पानी हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कृषि को उपजाऊ बनाता है और जीवन और भोजन का उत्पादन करता है और लोगों के लिए आजीविका का स्रोत भी है; लेकिन साथ ही, एक व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन में पानी का भी विशेष महत्व होता है। सिख धर्म की उत्पत्ति जल के विषय के चारों ओर हुई है, इसलिए यह जल से संबंधित आख्यानों से भरा हुआ है। सिख विचारधारा में, सिख इतिहास को पानी पर दिए हुए उपदेशों से भरा हुआ देखते हैं। काव्य साहित्य के क्षेत्र में बहुत सारी कल्पनाएँ पानी से संबंधित पाई जाती हैं।

यही कारण है कि, सिख धर्म की शिक्षाओं और सिद्धांतों में इसे सुन्दरता के साथ चित्रित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप इसने सिख धर्म के निर्माण में पाए जाने वाले काव्यात्मक, संगीत और अन्य कलात्मक रूपों को शुरुआती नींवें प्रदान की हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि श्री हरमंदिर साहिब, अमृतसर, पंजाब, भारत, जो कि सिख धर्म सा सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है, का गृभ-गृह एक बड़े विस्तार वाले सरोवर अर्थात् तलाब के बीच में पाया जाता है। एक साधक या भक्त कभी-कभी इन सरोवरों या तीर्थों स्थानों में पाए जाने वाले सरोवरों या यहां तक ​​कि स्थानीय गुरुद्वारों में लोगों को अज्ञानतावश धार्मिक स्नान करने के लिए या तो पूरी डुबकी को ही लगाते हुए या फिर इन गंदे सरोवरों में से अपने हाथ के चुल्‍लू को भरते हुए, या तो इसे अपनी आँखों पर लगाते हुए, या फिर इसे अपने सिर पर छिड़कते हुए, या फिर अपने पैरों और बाहों को धोते हुए देख सकता है, इन सभी कामों को यह सोचकर किया जाता है कि यह आंतरिक आध्यात्मिक जीवन और एक साधक के जीवन के बुरे कर्मों को क्षमा करता है, अर्थात् उसके उसके पापों से बचाता है।

इसलिए, सत्य के साधकों को विवेक या ज्ञान (दिव्य बुद्धि, आत्म ज्ञान) की व्याख्या देने के लिए, श्री गुरु ग्रंथ साहिब ने पानी के बारे में बहुत कुछ कहा है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार, पानी को जीवन के आरम्भ के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, पानी जीवन का पहला स्रोत है। सारा जीवन इस से उत्पन्न हुआ है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 472)।[i] ऐसा माना जाता है कि ईश्वर ने हवा, पानी और आग को एक करके संसार का निर्माण किया है, गुरु हवा, पानी और आग को नियंत्रित करता है; उसने ही संसार के नाटक का मंचन किया है  (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1113)।[ii]  इसके अलावा, इसे इस सीमा तक महत्व दिया जाता है कि क्योंकि जीवन पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता है, इस लिए इसे संसार का पिता कहा गया है, पानी पिता है”  (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 8), [iii] और “पानी संसार का पिता है, अंत में, पानी सभी को नष्ट कर देता है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1240)।[iv]   इस अर्थ में ईश्वर को पानी के बराबर माना जाता है, जो कि जीवन का दाता है और बड़ी स्पष्टता के साथ देखा जा सकता है कि उसे ही जीवन का प्रवर्तक बताया गया है।

कुछ भी कहें, उपरोक्त स्पष्टीकरण यह स्पष्ट करता है कि ईश्वर ने पहले हवा और फिर पानी की रचना की। तब पूरे ब्रह्मांड को पानी से रचा गया और प्रभु परमेश्वर का प्रकाश हर एक में वास करता है, “सच्चे ईश्वर से हवा आई, और पानी हवा से आया था। पानी से, उसने त्रिलोक की रचना की; उसने हरेक मन में अपना प्रकाश उँडेल दिया है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 19)।[v] इसके परिणामस्वरूप, पानी हर जगह पर है और पानी के बिना कोई जगह नहीं है, “पानी में और पृथ्वी पर, दस दिशाओं से वर्षा होती है। कोई भी जगह सूखी नहीं है“ (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1282)।[vi] इस अर्थ में संसार पानी का विस्तार है, इसलिए इसे सदा संसार-रूपी-समुद्र (भवसागर) कहा जाता है। लेकिन, यह कहा जाता है कि संसार-रूपी यह समुद्र भ्रष्ट हो गया है और इसलिए एक साधक इसके दूसरे छोर पर जाने के लिए सहायता मांगता है, जहाँ वह सत्य का लोक (सच खण्ड) है,

“संसार-रूपी-समुन्द्र के भयानक जहर में, लोग डूब रहे हैं – कृपया उन्हें निकाल ले और बचा ले!” यह तेरा सेवक नानक की विनम्र प्रार्थना है”[vii]

गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 39-40

एक सिख को इस गंदे संसार के सागर को पार करने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए कहा जाता है, “(हे भाई!) संसार के समुद्र को पार करने के लिए हर तरह का प्रयास करे” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 12)।[viii] उससे कहा गया है कि उसे अपनी सोच में पानी की भाषा को लेते हुए ईश्वर से प्यार करना चाहिए, हे मन, ईश्वर से प्यार कर जैसे एक कमल का फूल पानी से प्यार करता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 59-60)।[ix]  क्योंकि, अगर वह पानी से दूर हो जाता है, तो उसके पास जीवन नहीं बचता है, पानी में, जीवों की रचना हुई है; पानी के बिना वे मर जाते हैं (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 59)।[x] यह “पानी” ही है, जो जीव के दुख को मिटा सकता है, अर्थात् साधक, पानी के बिना एक पल भी नहीं रह सकता। ईश्वर (स्वयं) मछली के मन की इस पीड़ा को जानता है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 60)।[xi] अगर वह पानी के बिना जीने की कोशिश करता है, तो वह पानी के बिना मछली की तरह मर जाएगा, क्योंकि उसका जीवन इस पर निर्भर करता है, जिस तरह एक कमल का फूल पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता, उसी तरह एक मछली बिना पानी के मर जाती है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 63)।[xii] इसलिए, प्रभु के जल की खोज की पुकार इस जीवन में करने के लिए दी गई है, हे मेरे प्यारे मन, मेरे मित्र, मन की मछली तभी जीवित रहती है, जब वह प्रभु के जल में लीन रहती है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 80)।[xiii]

इसका मूल कारण यह है कि प्रभु के पास जीवन का जल है, प्रभु जल का खजाना है; मैं उस पानी में मछली हूँ। और इस पानी के बिना तेरा सेवक नानक मर जाएगा (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 95)।[xiv] वह न केवल पानी है, पूरे संसार के ऊपर, वही संसार का जीवन है, हे नानक! जैसे पानी पानी के साथ एक हो जाता है, वैसे ही जीवन उसके साथ एक हो जाता है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 41),[xv] और न केवल महासागर है, तू समुद्र का पानी है, और मैं तेरी मछली हूं” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 100),[xvi] लेकिन साथ ही वह जीवन जल यानी अमृत जल का देने वाला भी है, कमल मन की गहराई में खिलता है, और अमृत रस यानी जीवन जल से भरा हुआ होता है, एक साधक संतुष्ट हो जाता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 22)।[xvii] इसलिए, जो कोई भी इस पानी को पीता है, वह स्थिर हो जाता है, जो लोग प्रभु के अमृत रस को पीते हैं, और वे हमेशा के लिए स्थिर हो जाते हैं” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 81),[xviii] और इसलिए एक साधक कह उठता है कि, मैं इसे लगातार पीता रहता हूं।” लेकिन यह ऐसा पानी है कि खत्म ही नहीं होता (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 323)।[xix]

 हालाँकि, जीवन का यह जल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब एक साधक अपने प्रभु परमेश्वर से मिलता है, जैसा पपीहे को वर्षा के बूंद से प्यार होता है, वह उसके लिए प्यासा रहता है, जैसे मछली पानी में आनन्दित होती है। वैसे ही, हे नानक! नानक प्रभु के उत्कृष्ट सार से तृप्त हो जाता है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 226)।[xx] एक बार जब गुरु मिल जाता है, तो साधक का मन खिल उठता है, गुरु, पूर्ण सतगुरु है, वही मेरी माता और मेरे पिता है। गुरु के पानी की प्राप्ति से, मेरे मन का कमल खिल उठता है  (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 94)।[xxi] ठीक उसी समय, एक साधक को उस अनुग्रह अर्थात् कृपा पर आश्चर्य होता है, जल, पृथ्वी और आकाश के सभी प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं; मैं उस पवित्र के पैरों को धोता हूं (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 106),[xxii] क्योंकि साधक जीवन-मुक्त हो चुका है, इसके बाद उसे, कभी भी इस भयानक संसार समुद्र को पार नहीं करना पड़ेगा (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 175)।[xxiii] तौभी जीवन के जल को पाने के लिए, एक भक्त को अभी भी गुरु की सहायता की आवश्यकता है, कृप्या, हे ईश्वर, मुझे इस डरावने संसार समुद्र से बाहर निकाल, नानक को तेरा ही एकमात्र सहारा है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 261)।[xxiv]

संक्षेप में, एक साधक उपरोक्त चर्चा से यह समझता है कि जल जीवन का आरम्भ है। जल के बिना मानव जीवन अस्तित्व में नहीं हो सकता है, इसलिए पानी को ईश्वर के तुल्य माना जाता है, जो सारी मानव जाति का पिता है। न केवल उसे पानी माना जाता है, बल्कि वह जीवन का जल भी है और इसे देने वाला भी है। जीवन के जल को खोजने के बाद, एक भक्त का मन खिल उठता है। उसे यह पानी मिल सकता है, लेकिन सच्चे गुरु (सतगुरु) से मिलने के बाद ही। हालाँकि, यह हमें कुछ सवालों को पूछने के लिए प्रेरित करता है, ताकि एक साधक मोख, मुक्ति, उद्धार, छुटकारा, खुशी और परम आनंद को पा सके। जीवन का यह जल कहां है? मैं इस जीवित जल को प्राप्त करने के लिए क्या करुं? मुझे जीवन का जल कौन दे सकता है? जीवन का जल प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? मुझे इसे खोजने के लिए कहां जाना चाहिए? मुझे किस से पूछना चाहिए और इससे संबंधित अनेकों प्रश्न एक साधक के मन में आ जाते हैं? इन सवालों के जवाब स्पष्ट रूप से ग्रंथ बाइबल में दिए गए हैं।

 ग्रंथ बाइबल में, ईश्वर को जीवन का सोता या जीवन का जल, अमृत जल कहा जाता है, क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएँगे” (भजन 36: 9)। अकाल पुरुख, करता पुरुष परमेश्वर को “बहते जल का सोता”  कहा जाता है (यिर्मयाह 17:13)। लेकिन इसका सबसे दु∶खद हिस्सा यह है कि मनुष्य ने जीवन के इस सोते को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है, क्योंकि मेरी प्रजा ने दो बुराइयाँ की हैं : उन्होंने मुझ बहते जल के सोते को त्याग दिया है, और उन्होंने हौद [ईश्वर की खोज के लिए अपने तरीके और फार्मूले] बना लिए, वरन् ऐसे हौद [अर्थात् ऐसे असहाय रीति रिवाज और अनुष्ठान] जो टूट गए हैं, और जिन में जल नहीं रह सकता (यिर्मयाह 2:13)।

इसलिए, गुरु ग्रंथ की तरह ही, ग्रंथ बाइबल भी कुछ इस तरह कहता है,

“हे ईश्वर परमेश्वर, हे उसके लोगों के आधार, जितने तुझे छोड़ देते हैं, वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से भटक जाते हैं, उनके नाम भू्मि ही पर लिखे जाएँगे, क्योंकि उन्होंने बहते जल के सोते ईश्वर परमेश्वर को त्याग दिया है”

यिर्मयाह 17:13

नतीजतन, एक दु∶खद प्रलय उनकी प्रतिक्षा कर रहा है, “ये लोग सूखे कूएँ, और आँधी के उड़ाए हुए बादल हैं; उनके लिये अनन्त अन्धकार ठहराया गया है” (2 पतरस 2:17)। दुखद प्रलय और कुछ नहीं, अपितु हमेशा के लिए जीवन से रहित होना, हमेशा के लिए भटकना, कोई उम्मीद का न होना है।

हालाँकि, सतगुरु यीशु मसीह के आने से, जीवन रहित होने की, प्यास और उदासी की समस्या हल हो गई है, क्योंकि उसने ऐसे कहा है,

“यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। जो मुझ पर विश्‍वास करेगा, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’!”

यूहन्‍ना 3∶37-28

क्योंकि वह स्वयं जीवन का जल है, “मैं जीवन का जल हूँ” (दूसरे शब्दों में, आबे हयात का चश्मा जिन्दगी का पानी, जीवन का जल और अमृत जल) (यूहन्ना 4:10)। इसलिए सतगुरु यीशु मसीह ने ऐसे कहा, “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा” (यूहन्ना 4:13-14)। इसके अलावा, “उसने मुझे बिल्‍लौर की सी झलकती हुई, जीवन के जल की नदी दिखाई, जो परमेश्‍वर और मेम्ने के सिंहासन [सतगुरु यीशु मसीह] से निकलकर उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी” (प्रकाशितवाक्य 22:1)। सतगुरु यीशु मसीह स्वयं ही अमृत जल का एकमात्र स्रोत है।

अब, जीवन के जल को प्राप्त करने के लिए, एक साधक को कोई अनुष्ठान या धार्मिक संस्कार करने की आवश्यकता नहीं है, “मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊँगा” (प्रकाशितवाक्य 21: 6)। जीवन का यह जल किसी भी प्रकार के कर्म से, किसी भी प्रकार के प्रयास से, किसी भी प्रकार के साधन से, किसी भी प्रकार की कमाई के साथ नहीं मिलता, इसलिए इसके विषय में घमण्ड नहीं किया जा सकता है, “क्योंकि विश्‍वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है; और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्‍वर का दान है, और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे” (इफिसियों 2:8-9) और सतगुरु यीशु मसीह के शब्दों में इसकी और भी स्पष्टता से पुष्टि हो जाती है, “यदि तू परमेश्‍वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन [सतगुरु यीशु मसीह] है, जो तुझसे कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे जीवन का जल देता?” (यूहन्ना 4:10)। इसलिए, एक साधक को अपनी मन्नते पूरे करने के लिए तीर्थयात्रा नहीं करनी पड़ता है, न ही किसी को अनुष्ठान वाला स्नान करना पड़ता है और न ही किसी धार्मिक स्नान के लिए कहीं जाना पड़ता है, क्योंकि सतगुरु यीशु मसीह कहते हैं कि,

“जिन्होंने नहा लिया है, उन्हें अब और अधिक नहाने की ज़रूरत नहीं; उनका तो पूरा शरीर साफ है, और तुम साफ हो”

यूहन्ना 13:9-10

इसलिए, जो लोग सतगुरु यीशु मसीह के निकट आते हैं, उसने वह यह कहता है कि, “मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूँगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतों से शुद्ध करूँगा” (यहेजकेल 36:25)। इसलिए, एक साधक को अपने उद्धार के लिए इस पानी को प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, “तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतों से जल भरोगे” (यशायाह 12:3)। यह हमें युगों से पूछे जाने वाले एक पुराने प्रश्न के निकट ले जाता है कि, एक साधक के पास जीवन का यह जल कैसे हो सकता है, और इसका उत्तर ग्रंथ बाइबल में विश्वास के मार्ग पर चलने में दिया गया है,

“आओ, हम सच्‍चे मन और पूरे विश्‍वास के साथ, और विवेक का दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्‍वर के समीप जाएँ”

इब्रानियों 10:22

इस चर्चा के अनुसार, जब एक साधक यानी एक भक्त सतगुरु यीशु मसीह पर विश्वास करता है और उसे जीवन के जल रूप के रूप में स्वीकार करता है, तब उसी क्षण जीवन-मुक्त हो जाता है। क्योंकि, यह जीवन का जल और कुछ नहीं है, बल्कि वह है, जिसे पाने से एक साधक सतगुरु यीशु मसीह में आनन्द मनाता है, उसकी प्राप्ति से उसे अनन्त जीवन की प्राप्ति होती है। इसलिए ग्रंथ बाइबल कहता है कि,

“जिसके पास पुत्र [सतगुरु यीशु मसीह] है, उसके पास जीवन है। जिसके पास परमेश्वर का पुत्र नहीं है [सतगुरु यीशु मसीह] उसके पास जीवन नहीं है”

1 यूहन्ना 5∶12

। जिस प्रकार जल के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं हो सकता: वैसे ही सतगुरु यीशु मसीह के बिना अनंत जीवन का अस्तित्व नहीं हो सकता।

इसलिए, एक साधक बार-बार ग्रंथ बाइबल में अमृत जल या जीवन के जल के वाक्य को प्रगट होते हुए देखता है, “अहो सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम ही आकर ले लो!” (यशायाह 55:1)। वास्तव में, ग्रंथ बाइबल हरेक जो प्यासा है, को यह कहते हुए आमंत्रित करती है कि: “जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले”  (प्रकाशितवाक्य 22:17) इसके परिणामस्वरूप, अब यह स्पष्ट हो गया है कि जो साधक जीवन का जल प्राप्त करने का निर्णय लेता है, वह सतगुरु यीशु मसीह के निकट आएगा और उसमें अपना विश्वास रखेगा। और ऐसे व्यक्ति के बारे में गुरु ग्रंथ सही ही कहता है कि ऐसा व्यक्ति इस संसार में एक बुद्धिमान व्यक्ति है, क्योंकि सतगुरु यीशु मसीह ही एकमात्र व्यक्ति है, जो एक साधक को इस संसार-समुद्र के दूसरी ओर यानी सच-खंड में ले जा सकता है,

“बुद्धि का यह सच्चा निशान है: कि एक व्यक्ति कमल के फूल की तरह अलग-थलग रहता है, जैसे पानी की चौपक्ति, पानी का कमल फूल होता है”[xxv]

गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 152

[i] पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥

[ii] पउणु पाणी अगनि बाधे गुरि खेलु जगति दिखाइआ ॥

[iii] पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥

[iv] पाणी पिता जगत का फिरि पाणी सभु खाइ ॥२॥

[v] जल ते त्रिभवणु साजिआ घटि घटि जोति समोइ ॥

[vi] जल थल चहु दिसि वरसदा खाली को थाउ नाहि ॥

[vii] बिखु भउजल डुबदे कढि लै जन नानक की अरदासि ॥४॥१॥६५॥

[viii] सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥

[ix] रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल कमलेहि ॥

[x] जल महि जीअ उपाइ कै बिनु जल मरणु तिनेहि ॥१॥

[xi] बिनु जल घड़ी न जीवई प्रभु जाणै अभ पीर ॥२॥

[xii] बिनु जल कमल सु ना थीऐ बिनु जल मीनु मराइ ॥

[xiii] मन पिआरिआ जीउ मित्रा हरि जल मिलि जीवे मीना ॥

[xiv] हरि जलनिधि हम जल के मीने जन नानक जल बिनु मरीऐ जीउ ॥४॥३॥

[xv] सभु जगजीवनु जगि आपि है नानक जलु जलहि समाइ ॥४॥४॥६८॥

[xvi] तूं जलनिधि हम मीन तुमारे ॥

[xvii] अंतरि कमलु प्रगासिआ अंम्रितु भरिआ अघाइ ॥

[xviii] अंम्रितु हरि पीवते सदा थिरु थीवते बिखै बनु फीका जानिआ ॥

[xix] पीवि रहे जल निखुटत नाही ॥३॥

[xx] जिउ चात्रिक जल प्रेम पिआसा ॥ जिउ मीना जल माहि उलासा ॥

[xxi] मेरा मात पिता गुरु सतिगुरु पूरा गुर जल मिलि कमलु विगसै जीउ ॥३॥

[xxii] जल थल महीअल सभि त्रिपताणे साधू चरन पखाली जीउ ॥३॥

[xxiii] फिरि बहुड़ि न भवजल फेरे जीउ ॥२॥

[xxiv] भवजल ते काढहु प्रभू नानक तेरी टेक ॥१॥

[xxv] जल पुराइनि रस कमल परीख ॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *