12.मन की मैलु न तन ते जातिचुल्लू – एक मुट्ठी भर पानी

पानी के बिना जीवन असंभव है। पानी इस संसार में सब कुछ को जीवन प्रदान करता है। समय की शुरुआत ही से संसार के सभी धर्मों में इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण रहा है। लगभग सभी धर्मों में, सृष्टि का वृतान्त या तो पानी से सम्बन्धित है या फिर पानी से पाए जाते हैं। आज अधिकांश धर्म पानी को शुद्ध और पवित्र मानते हैं। जल शुद्धि का साधन है, और इसे दैवीय शक्तियों का निवास माना जाता है। वास्तव में, हिंदू धर्म जैसे धर्मों में पानी की पूजा एक साधक या भक्त द्वारा की जाती है? नदियाँ पृथ्वी की रक्तवाहिनियों की तरह हैं और इसलिए उन्हें पवित्र माना जाता है, क्योंकि वे जीवनदायिनी हैं। यह भी माना जाता है कि पानी के तालाब आध्यात्मिक क्षेत्र (सच खंड या बैकुंठ) के द्वार हैं, इसलिए उन्हें तीर्थस्थान या घाट कहा जाता है। इसीलिए विशेष अवसरों पर पानी में डुबकी लगाना पापों या बुरे कर्मों से छुटकारा पाने के लिए पवित्र माना जाता है।

इसके साथ ही, इसका सम्बन्ध स्वच्छता से भी है, जो बदले में शुद्धता और पवित्रता से सम्बन्धित है। हालाँकि, अनुष्ठान आधारित स्नान या शरीर की सफाई के लिए संसार में कई अन्य तरीके भी पाए जाते हैं, जैसे भारत में बहते हुए पानी से शरीर को साफ करना, अरब के देशों में कीचड़ या रेत के साथ शरीर को रगड़ना और पश्चिमी संसार में कागज या किसी कपड़े के टुकड़े से पोंछना। तौभी, पानी से साफ करने का तरीका ही सबसे अच्छा माना जाता है। परिणामस्वरूप, पानी स्वच्छता और शुद्धता के लिए अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग बन गया है। इसलिए, ऐसा सोचा गया है कि यह आंतरिक शुद्धता को भी प्रदान करता है।

जब बात सिख धर्म की आती है, तो पानी और भी बड़ी भूमिका को निभाता है। दिलचस्प बात तो यह है कि सिख धर्म का जन्म एक नदी के किनारे हुआ था और यह लगभग पाँच नदियों में पनपा, इसलिए सिख धर्म का घर पंजाब (पंज-आब) में पाया जाता है। गुरु ग्रंथ पानी के बारे में बहुत कुछ कहता है। ऐसा माना जाता है कि एक चुल्लू, यानी एक मुट्ठी भर पानी, पूरे शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए पर्याप्त है। एक सिख को “पंज स्नान” लेने के लिए कहा गया है – जिसका अर्थ है कि गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह धोना, या पाठ करने से पहले, और इसी तरह की अन्य औपचारिकताओं को पूरा करना)। पांच स्नान (पंच स्नान) सिखों में आम प्रचलित है।

इस प्रकार, यह देखा गया है कि बाहरी सफाई एक व्यक्ति की आंतरिक सफाई या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बाहरी स्वच्छता एक व्यक्ति को उसके मन, उसके विचारों और सोचने के तरीके को साफ करने में सहायता कर सकती है। इस कारण, उपरोक्त चर्चा के अनुसार, सिख पंथ में “पंज स्नान” की विचारधारा की कल्पना की गई थी। हालाँकि, गुरु ग्रंथ स्पष्ट करता है कि एक व्यक्ति के बाहरी मनुष्य (बिदेही, पिंडा) और एक आंतरिक मनुष्य (देही गुप्त) के बीच अंतर है, हे भाई! शरीर की मालिक आत्मा (शरीर में) छुपी रहती है, सिर्फ शरीर दिखाई देता है!” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 900)।[i] क्योंकि मन आंतरिक मनुष्य में वास करता है, बाहरी रूप से किए गए औपचारिक स्नान से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इसीलिए गुरु ग्रंथ कहता है कि मनुष्य का मन किसी भी कर्मकांड या साधन द्वारा शुद्ध या साफ नहीं किया जा सकता है, अर्थात पानी से भरी मुट्ठी (चुल्लू) से भी नहीं। इसका कारण यह है कि जब तक एक साधक सतगुरु से नहीं मिल जाता तब तक यह मन एक दुचित्ते मन वाली अवस्था (अस्थिर अवस्था) में रहता है।

तब तक, मन की स्थिति को हवा की तरह घूमते हुए, बेचैन, भटकते हुए के रूप में चित्रित की गई है, हे भाई! (जिस मनुष्य का) चंचल मन रक्ती भर भी आत्मिक आनंद में निवास देने वाले नाम में बसता है (वह मनुष्य असल बैरागी है, और वह बैरागी) आत्मिक आनंद लेता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 634),[ii] अजनबी, परदेशी, विदेशियों की तरह, बाहर खुशी की तलाश में, अगर मनुष्य का मन प्रभु-चरणों से विछुड़ा रहे तो उसको सारा जगत बेगाना लगता है“ (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 767),[iii] जैसे कि एक सांप होता है, एक पागल कुत्ता होता है, एक गधा होता है, एक सारस होता है, एक कौवा होता है, कौए को मुश्क कपूर खिलाने से कोई गुण नहीं निकलता (क्योंकि कौए की गंदगी खाने की आदत नहीं जा सकती, इसी तरह) सांप को दूध पिलाने से भी कोई फायदा नहीं हो सकता (वह डंक मारने से फिर भी नहीं हटता)?” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 481)[iv] इसीलिए मन इच्छाओं (तृष्णा) की लहरों से तनावग्रस्त है, “(हे कबीर! ये जानते हुए भी कि प्रभु के महिमा विकारों को जला के प्रभु-चरणों में जोड़ती है) मनुष्य का मन पंछी बन जाता है (एक प्रभु का आसरा छोड़ के) भटक-भटक के (मायावी पदार्थों के पीछे) दसों दिशाओं में दौड़ता फिरता रहता है (और यह कुदरत का नियम ही है कि) जो मनुष्य जैसी संगति में बैठता है वैसा ही उसको फल मिलता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1369)।[v]

इसलिए, किसी भी मात्रा में पानी के साथ मन को साफ करना या शुद्ध करना एक व्यर्थ प्रयास है, “(पर) मन में लगी हुई मैल की उसको खबर नहीं, (सदा शरीर को) बाहर से मल मल के धोता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 139)।[vi] मन गंदगी के अलावा और कुछ भी नहीं पैदा कर सकता है

, “जिस मनुष्यों के हृदय साफ नहीं, धोखा है, पर शरीर को बाहर से धो-धो के रखते हैं, वे (अपने हरेक कार्य-व्यवहार में) झूठ और धोखा ही बरतते हैं, पर झूठ उघड़ आता है, (क्योंकि) मन के अंदर जो कुछ होता है वह जाहिर हो जाता है, छुपाया छुप नहीं सकता”[vii]

गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1243

यही कारण है कि इस मन को प्रभु के अधीन लाने के लिए कहा गया है, “हे जगह-जगह भटकने वाले मन! हे प्यारे मन! कभी तो प्रभु चरणों में जुड़” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 451)।[viii]

केवल जब एक भक्त या साधक अपने मन को प्रभु के नियंत्रण में लाता है, तब ही नाम, ईश्वरीय ज्ञान (अमृत ज्ञान), सुख (परम आनंद) और इसी तरह की अन्य बातों के प्रति उसकी खोज पूरी होती है, हे मेरे मन! (अंदर ही प्रभु चरणों में) टिका रह, (देखना, नाम-अमृत की तलाश में) कहीं बाहर ना भटकते फिरना। अगर तू बाहर ढूँढने निकल पड़ा, तो बहुत दुख पाएगा। अटल आत्मिक जीवन देने वाला रस तेरे घर में ही है, हृदय में ही है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 598),[ix] और ऐसा करने से एक साधक के लिए आत्मिक मार्ग खुलता है, उसकी आत्मिक तरक्की होती है, उसके पास आत्मिक दृष्टि होती है, उसे आत्मिक बोध की प्राप्ति होती है। वह जागृत अवस्था में आ जाता है, वह ज्ञान की अवस्था में होता। इस प्रकार, उपाय नाम में देखा गया है, (पर) यदि (मनुष्य की) बुद्धि पापों से मलीन हो जाए, तो वह पाप अकाल-पुरख के नाम में प्यार करने से ही धोया जा सकता है” (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 4)।[x]

संक्षेप में, पानी जीवन का एक अनिवार्य तत्व है। हर कोई इसे किसी भी धर्म में इस तरह से देख सकता है कि पानी एक तरह से धर्म के अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है। नदियों और सरोवरों (तालाबों) को हमेशा से ही एक व्यक्ति की आंतरिक पवित्रता के रूप में देखा गया है। हालाँकि, पानी की कोई भी मात्रा मन को शुद्ध नहीं कर सकती है, क्योंकि यह आंतरिक रूप से गंदा और भ्रष्ट है। मन की स्थिति एक जानवर की तरह है। एक भक्त को सलाह दी जाती है कि वह अपने मन को प्रभु या सतगुरु के प्रभुत्व के अधीन लाए। इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि हम नाम की शरण लें।

अब, उपरोक्त चर्चा हमें कुछ सवालों के जवाब तलाशने की ओर ले जाती है। एक व्यक्ति अपने मन को प्रभु के नियंत्रण में कैसे ला सकता है? साधक को नाम कहाँ मिल सकता है? अगर मन या भीतरी मनुष्य भ्रष्ट है, तो यह सवाल यह उठता है कि वह कैसे और क्यों भ्रष्ट हुआ और इसका हल क्या है? कोई व्यक्ति ज्ञान की स्थिति या परम आनंद की स्थिति को कैसे प्राप्त कर सकता है? हम ग्रंथ बाइबल में इन सब के उत्तरों को पाते हैं।

ग्रंथ बाइबल में मन की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की गई है और इसे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। यह कहता है, “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है (यिर्मयाह 17:9)। यह गन्दगी और कूड़े कर्कट (विष्ठा) के अलावा और कुछ भी नहीं पैदा कर सकता है,

“क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्‍टता, छल, लुचपन, कुदृष्‍टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं”

मरकुस 7:21-22

क्योंकि मन बुरी इच्छाओं का गुलाम है, यह हमेशा नाश की ओर ले चलता है, “परन्तु प्रत्येक व्यक्‍ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है” (याकूब 1:14)। इसलिए, कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी कठिन प्रयास क्यों न करे, वह स्वयं को इसकी गंदगी वाले दाग से साफ नहीं कर सकता है

, “चाहे तू अपने को सज्जी से धोए और बहुत सा साबुन भी प्रयोग करे, तौभी तेरे अधर्म का धब्बा मेरे सामने बना रहेगा, प्रभु परमेश्वर की यही वाणी है”

यिर्मयाह 2:22

हालाँकि, ईश्वर अपनी पूर्ण कृपा (नदर) में होते हुए, एक साधक को खुलेआम अपने निकट आने के लिए आमंत्रित करता है,

“आओ, हम आपस में वादविवाद करें : तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएँगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्‍वेत हो जाएँगे”

यशायाह 1:18

। बुलाने वाला और कोई नहीं, अपितु वह है, जिसने ब्रह्मांड यहाँ तक इसके सारे पानी को भी को रचा है, और वह अपने हाथ के एक चुल्लू से इस के सारे पानी को भी नाप लेता है, “किसने महासागर को चुल्‍लू से मापा और किसके बित्ते से आकाश का नाप हुआ, किसने पृथ्वी की मिट्टी को नपुए में भरा और पहाड़ों को तराजू में और पहाड़ियों को काँटे में तौला है? किसने यहोवा के आत्मा को मार्ग बताया या उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है? उसने किससे सम्मति ली और किसने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है? देखो, जातियाँ तो डोल में की एक बूंद या पलड़ों पर की धूल के तुल्य ठहरीं; देखो, वह द्वीपों को धूल के किनकों सरीखे उठाता है” (यशायाह 40: 12-15)। इस प्रकार, यहाँ हम ग्रंथ बाइबल और गुरु ग्रंथ के बीच एक स्पष्ट अंतर को देखते हैं। गुरु ग्रंथ में हम देखते हैं कि, एक चुल्लू अर्थात एक मुट्ठी भर पानी एक साधक के लिए उसके मन को शुद्ध करने के लिए पर्याप्त है, परन्तु साथ ही यह एक निरर्थक प्रयास भी है, क्योंकि मन भ्रष्ट या दागदार है। परन्तु यहाँ ग्रंथ बाइबल में हम पाते हैं कि सारे संसार का पानी संसार के रचियता (करता पुरख) के ही चुल्लू में है।

ग्रंथ बाइबल आगे बताता है कि प्रभु अपने प्यार में होते हुए, एक साधक को, अर्थात एक भक्त को वह अपने हाथ के चुल्लू या अपने हाथ की मुट्ठी से उस पर आने वाली सभी बुरी चीजों से छुपा लेता है, “उसने अपने हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा है” (यशा 49:2) अपितु उसने यह कहते हुए अपने हाथ की हथेली में एक साधक की छवि को उकेरा है कि, “देख, मैं ने तेरा चित्र अपनी हथेलियों पर खोदकर बनाया है; तेरी शहरपनाह सदैव मेरी दृष्‍टि के सामने बनी रहती है” (यशायाह 49:16)। कहने का अर्थ यह है कि उसकी दृष्टि सैदव एक साधक पर टिकी रहती है। यही प्रभु (अलख परमेश्वर, अकाल पुरख, करता पुरख), शब्द स्वरूप अपने लोगों के बीच रहने के लिए नीचे आ गया, जिसने एक साधक की शक्ल को अपने हाथ की हथेली में उकेरा है और इस शब्द को ग्रंथ बाइबल में सतगुरु यीशु मसीह के नाम से जाना जाता है। इसी कारण, सतगुरु यीशु मसीह ने एक बार एक बड़ी भीड़ से ऐसे कहा था कि, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। जो मुझ पर विश्‍वास करेगा, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी“ (यूहन्ना 7:37-38)। क्योंकि वह स्वयं अमृत जल है, “जीवन का जल मैं हूँ” (दूसरे शब्दों में, आबे हयात का चश्मा, जिन्दगी का पानी) (यूहन्ना 4:10)। सतगुरु यीशु मसीह ने आगे कहा है कि,

“जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा”

यूहन्ना 4:13-14

ग्रंथ बाइबल यह स्पष्ट करता है कि जो कोई भी उसके नाम से पुकारेगा, वह बच जाएगा, “क्योंकि जो कोई भी प्रभु के नाम से पुकारेगा उसे बचाया जाएगा” (रोमियों 10:13) क्योंकि केवल वही एकमात्र नाम दिया गया है, जिसके द्वारा मनुष्य का उद्धार होगा,

“किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें”

प्रेरितों के काम 4:12

दिलचस्प बात यह है कि सतगुरु यीशु मसीह को ग्रंथ बाइबल में अन्य नामों से भी जाना जाता है, “मसीह परमेश्‍वर की सामर्थ्य और परमेश्‍वर का ज्ञान” (1 कुरिन्थियों 1:24), एक साधक को “प्रभु और उद्धारकर्ता सतगुरु यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में” बढ़ने के लिए बुलाया गया है (2 पतरस 3:18)। वह पवित्र या बिना दोष के या किसी भी मानवीय भ्रष्टता से मुक्त है, इसलिए वह हमारे पापों (बुरे कामों) को दूर करने में सक्षम है,

“जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएँ”

2 कुरिन्थियों 5:21

इसके अलावा, सतगुरु यीशु मसीह उदारता से दिए जाने का दाता भी हैं, यहाँ तक कि उसने स्वयं को ही हमारे लिए दे दिया, “परन्तु परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा” (रोमियों 5:8)। इसलिए, एक साधक साहसपूर्वक कह ​​सकता है,

“इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं में, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में प्रसन्न हूँ; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ”

2 कुरिन्थियों 12:10

इसके अतिरिक्त उसे सत्य कहा गया है, और वही सत्य का देहधारी है, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना 14:6)। उसे सर्वोच्च पदवी दी गई है, जो राजाओं का राजा या प्रभुओं के प्रभु की है, “उसके वस्त्र और जाँघ पर यह नाम लिखा है : “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” (प्रकाशितवाक्य 19:16)।

यही वह स्थान है, जहाँ पर पानी से भरी हुई मुट्ठी अर्थात चुल्लू का चित्र अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जैसा कि गुरु ग्रंथ में दर्शाया गया है। क्योंकि, एक साधक को अपने मन को प्रभु की प्रभुता में लाने के लिए, एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए चुल्लू भर पानी ईश्वरीय ज्ञान या ईश्वरीय विचार (ब्रम्ह विचार) है; एक योगी के लिए चुल्लू भर पानी सभी प्रकार के दोषों (विकारों) से मुक्ति की प्राप्ति है; ब्राह्मण के लिए चुल्लू भर पानी सन्तोष की प्राप्ति है; परिवार के मुखिया के लिए चुल्लू भर पानी सत्यता और उदारता है; एक राजा के लिए चुल्लू भर पानी सभी के लिए न्याय है; और एक शिक्षित व्यक्ति या एक विद्वान के लिए चुल्लू भर पानी सत्य का प्रतिबिंब है, हे नानक! (सिर्फ पानी से चुल्लियां करने से आत्मिक जीवन की सुच्चता नहीं आ सकती, पर) यदि कोई मनुष्य (सच्ची चुल्ली) भरनी जान ले तो (दरअसल सुच्ची) पवित्र चुल्लियां ये हैं: विद्वान के लिए चुल्ली विचार की है (भाव, विद्वान की विद्वता पवित्र है अगर उसके अंदर विचार भी है), जोगी का काम-वासना से बचे रहना जोगी के लिए पवित्र चुल्ली है, ब्राहमण के लिए चुल्ली संतोख है और गृहस्थी के लिए चुल्ली है, उच्च आचरण और सेवा। राजा के न्याय चुल्ली है (गुरु ग्रंथ, पृष्ठ 1240),[xi]

परिणामस्वरुप, जो कोई भी सतगुरु यीशु मसीह से मिलता है, वह जानता है कि सच्चे चुल्लू वाला पानी उसके जीवन को बदल देगा और उसके मन को शुद्ध करेगा, दूसरे शब्दों में, उसके सोचने के तरीके, उसके जीवन के तरीके को बदल देगा। उसमें परिवर्तन लाएगा और वह ज्ञान (अमृत-ज्ञान) की फसल काटने में सक्षम होगा जिसके परिणामस्वरूप वह इन गुणों को स्वयं में देखेगा जैसे – “प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम”  (गलतियों 5:22-23),

और “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो, और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो”

कुलुस्सियों 3:12-17

। इससे साधक को सुख (परम आनंद) को साकार करने में सहायता मिलेगी – जो कि एक एक साधक का सर्वोच्च लक्ष्य होता है। इसलिए, सतगुरु यीशु मसीह के निकट आएं।


[i] देही गुपत बिदेही दीसै ॥

[ii] मनूआ पउणु बिंदु सुखवासी नामि वसै सुख भाई ॥

[iii] मनु परदेसी जे थीऐ सभु देसु पराइआ ॥

[iv] कऊआ कहा कपूर चराए ॥ कह बिसीअर कउ दूधु पीआए ॥२॥

[v] कबीर मनु पंखी भइओ उडि उडि दह दिस जाइ ॥ जो जैसी संगति मिलै सो तैसो फलु खाइ ॥८६॥

[vi] अंतरि मैलु लगी नही जाणै बाहरहु मलि मलि धोवै ॥

[vii] जिन कै हिरदै मैलु कपटु है बाहरु धोवाइआ ॥ कूड़ु कपटु कमावदे कूड़ु परगटी आइआ ॥

[viii] मेरे मन परदेसी वे पिआरे आउ घरे ॥

[ix] मन रे थिरु रहु मतु कत जाही जीउ ॥ बाहरि ढूढत बहुतु दुखु पावहि घरि अंम्रितु घट माही जीउ ॥ रहाउ ॥

[x] भरीऐ मति पापा कै संगि ॥ ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥

[xi] नानक चुलीआ सुचीआ जे भरि जाणै कोइ ॥ सुरते चुली गिआन की जोगी का जतु होइ ॥

ब्रहमण चुली संतोख की गिरही का सतु दानु ॥ राजे चुली निआव की पड़िआ सचु धिआनु ॥

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